Sunday 1 July 2012

तुम हों तो मैं हूँ तुम नहीं तो मैं नहीं

जब से जन्म लिया है शायद तब से अपने हर रिश्ते में बस तुम्हे ही ढूँढा हैं | बस तुम्हे हाँ बस तुम्हे |
शिव  नाम है तुम्हारा जाने कैसे जुड़ा है मेरा हृदय तुम्हारे साथ कि हर जगह हर ओर बस तुम्ही नज़र आते हों |हिमालय की कंदराओं में तुम , गंगा कि धाराओं में तुम , हरे भरे बागों में तुम , पपीहे की पुकार में तुम , मीरा कि तान में तुम, कबीर के निर्गुण और तुलसी के सगुण में तुम, मेरी शिराओं में तुम , मेरे रोम रोम में तुम हों बस तुम , शिव हों तुम |
शिव अर्थात मेरा अस्तित्व | 
तुम हों तो मैं हूँ तुम नहीं तो मैं भी नहीं |
जब जन्म लिया तो एहसास भी न था कि कौन हूँ और कहाँ से आयी हूँ ,पर जब पहली बार माँ के सीने से लग कर के सोयी थी तब उस सीने कि गर्माहट में तुम्हे महसूस किया था ,धीमे धीमे जब पहली बार बाबा कि उंगली पकड़ चलना सीखा तो उनकी उंगली में तुम्हे पाया, सखियों कि पुकार में तुम नज़र आये और उम्र के हर पड़ाव पर तुम्हे साथ ही पाया |क्यूँ इतना स्नेह दिया तुमने मुझे कि पिता में भी तुम ही दिखे, भाई में भी तुम ही , प्रेमी में भी तुम ही , पति में भी तुम ही और अंततः पुत्र में भी तुम ही |
कैसा है ये मेरा और तुम्हारा रिश्ता ?
मैं जब भी तुम्हारे सामने दुखी हों कर रोई तुमने बिन कुछ बोले मेरी व्यथा सुन ली और मुझे कष्ट देने वाले हर हाँथ को काट दिया तुमने , मैंने तो तुमसे अपने लिए न्याय माँगा था पर तुम्हे तो मेरी आँखों में आँसू स्वीकार ही नहीं थे | मेरे हर आँसू पर मैंने हर बार तुम्हारा तांडव नर्तन देखा है जैसे दछ यज्ञ के दौरान सती के स्वयं दाह के बाद तुमने सृष्टि का नाश किया था , मेरे हर आँसू पर तुम सदैव स्वयं भी रोये हों और तुम्हारे उस दर्द को हर बार महसूस किया है मैंने | तुम ही बताओ ये कौन सा और कैसा रिश्ता है हमारा तुमसे जब भी तुमसे ये पूछती  हूँ मैं  बस उत्तर में तुम्हारी मुस्कराहट ही मिलती है मुझे |
क्या अर्थ लगाऊँ तुम्हारी इस मुस्कुराहट का , क्या वही अर्थ लगाऊं जो मीरा कान्हा के अपनी पुकार पर आ जाने पर लगाया करती थी |
प्रेम है तुम्हे भी मुझसे वैसा ही जैसा कान्हा को मीरा से था , राधा से तो अपनी तुलना कर नहीं सकती मैंने क्यूंकि लाख प्रेम के बाद भी तुमने मेरे भाग्य में तो बिछोह और विरह ही लिखा है | बस उस प्रेम का मान रखने को दौड आते हों और फिर छोड़ जाते हों मुझे अकेला इस विश्वास के साथ कि भले तुम साथ न हों मेरे पर मैं जब भी पुकारूंगी तुम सब छोड़ कर मेरे लिए मेरे पास दौड़ आओगे |
आश्चर्य जनक है और अजीब भी मेरा और तुम्हारा ये रिश्ता पर यही मेरे जीवन का आधार है फिर वही एक बात जो सत्य है तुम हों तो मैं हूँ तुम नहीं तो मैं नहीं |

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