Wednesday 25 July 2012

अचानक वो बड़ा हों गया

आज शेखर कितने दिनों बाद लखनऊ आया था और उसे देख अनुष्का कितनी हैरान थी बरबस ही शेखर कि माँ से पूछ उठी ये वही शेखर है जो आपके गृह प्रवेश के समय ज़रा सा था | कल तक बच्चा दिखने वाला शेखर मानो अचानक ही बड़ा हों गया था | पर आज भी बातों में वही बचकानापन जो आज से आठ साल पहले था | और अनुष्का आंटी तो उसकी सबसे प्यारी आंटी हों गयी थी उन चंद दिनों में जो उसने अपने बचपन में लखनऊ में गुज़ारे थे | सारे सारे दिन क्रिकेट के खेल देखने की चाह में वो अनुष्का आंटी के पास ही बैठा रहता था | आज भी वो अनुष्का के साथ बैठ कर अपने बचपन के उन पलों को ही याद कर रहा था |
"कितनी शैतानी करता था नया मैं आंटी , सारा दिन आपको अपनी बातों से परेशान किया करता था ना |"
और अनुष्का भी हंस कर उत्तर में अपना सर हिला देती |
शेखर और उसके घर वाले समय समय पर लखनऊ आते रहते और जब भी आते अनुष्का से मिले बिना वापस नहीं जाते | बड़े ही सज्जन लोग थे और शेखर उनके घर का सबसे हंसमुख सदस्य था |जाते जाते वो अनुष्का आंटी का फोन नंबर ले गया और यदा कदा वो मेसज भेजता रहता था अनुष्का भी उसके मेसज का जवाब दिया करती थी |
इस बार शेखर अपने एक दोस्त प्रशांत के साथ लखनऊ आया और अपने उस दोस्त को वो अनुष्का आंटी से मिलाने भी लाया | प्रशांत कुछ ज्यादा ही खुले विचारों का था | अनुष्का ने उन दोनों को खाना खिलाया और फिर दोनों किसी काम से चले गए | प्रशांत कुछ दिनों तक लखनऊ में रहा और अनुष्का के वहाँ आता जाता रहा , परन्तु अनुष्का को उसका ये खुलापन कतई ना भाया और उसने प्रशांत से वांछित दूरी बनाये रखी | परन्तु इसके विपरीत प्रशांत ने लखनऊ से वापस जाने के बाद अनुष्का को मेसज भेजने शुरू करदिये | ये सभी मेसज द्विअर्थी होते थे | पहले तो अनुष्का ने उन्हें बर्दास्त किया परन्तु एक सीमा के बाद उसने शेखर को ये बताना ज़रूरी समझा | और उसने शेखर के वाया प्रशांत को मेसज करने से मना करा दिया |
आज शेखर कुछ एक साल बाद फिर लखनऊ आया परन्तु इस बार वह वो शेखर नहीं था जो हमेशा हँसता और बकवास करता रहता था |वो बड़ों कि तरह बात कर रहा था और इस बातचीत में उसने अपने पिता के प्रति अपनी असंतुष्टि दिखाई | अंदर से कुछ दुखी था शेखर और वो अनुष्का आंटी से जाने क्या क्या कह गया और अनुष्का भी चुपचाप सुनती रही | 
पर  आज भी अनुष्का ने उसमे एक छोटा सा बच्चा ही देखा जो अपने बड़ों कि गलती पर उनसे नाराज हों बैठा है कि जाओ अब तो मैं तुमसे बात ही नहीं करूँगा बहुत बुरे हों तुम | और इस बार भी अनुष्का से मिल और अपने कुछ काम निपटा शेखर वापस लौट गया और हर बार कि तरह अनुष्का आंटी के पास उसके मेसज आते रहे |
आज बहुत दिनों कि चुप्पी के बाद अनुष्का के पास शेखर का एक मेसज आया ," एक बात कहूँ आंटी आप बुरा तो नहीं मानेंगी |" 
अनुष्का को फिर लगा कोई बचकानी बात होगी और उसने हमेशा कि तरह सुनने कि स्वीकृती दे दी |
और शेखर ने कहा आंटी आज कल मेरा मन ठीक नहीं है मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता आप मुझे कुछ समय दे दिया करिये मुझसे कुछ बात कर लिया कीजिये |
अनुष्का ने कहा," करती तो हूँ तुमसे बात और जो कहना है बोलो |"
शेखर ने कहा ,"किसी रोचक विषय पर बात करिये |"
अनुष्का ने कहा ," रोचक विषय , हा हा तुम ही बताओ तुम्हारे हिसाब से रोचक विषय कौन सा है उसी पर बात कर लेते हैं |"
और बदले में अनुष्का में फिर किसी बचकाने से विषय कि अपेच्छा की थी |
शेखर बिना झिझक बोल पड़ा क्यूँ ना एक एक ज्यादा उमर कि महिला और कम उम्र के लडके के रिश्ते इस टॉपिक पर बात की जाये |
अनुष्का  अचानक चौंक पड़ी वो शेखर जो कल तक उसके लिए बच्चा था आज अचानक वो बड़ा हों गया |




Tuesday 24 July 2012

अस्पृश्यता

आज जो कुछ भी मै लिखने जा रही हूँ शायद उससे कुछ लोगों कि भावनाएं आहत होंगी , पर मेरा उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं बस मन में आये एक विचार को आप सबके सन्मुख रखना है | अतः यदि मेरी इस पोस्ट से किसी कि भावनाएं आहत होती है तो उसके लिए मैं छमा प्रार्थी हूँ |

जाति व्यवस्था का जन्म क्यूँ और कैसे हुआ ?
 क्यूँ समाज का वर्गीकरण हुआ ? 
इसके बहुत से कारण आप सब ने पढ़ें होंगे , यह भी पढ़ा होगा कि ब्राह्मणों का जन्म ब्रह्मा के मुख से , छत्रियों का जन्म भुजाओं से , वैश्यों का जन्म जांघ से तथा शूद्रों का जन्म पैर से हुआ |

ऋग्वेद में केवल तीन वर्णों का उल्लेख है. इसमें ब्रह्मन और क्षत्र शब्द तो आए हैं, लेकिन वैश्य या शूद्र शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है. वैदिक काल में भारतीय प्रजा के लिए हरेक जगह विश शब्द का इस्तेमाल हुआ है, जिसका अर्थ बसने वाला होता है. कालंातर में शायद यही वैश्य शब्द में बदल गया. हां, पुरुष सूक्त में एक बार राजन्य और एक ही बार शूद्र शब्द का इस्तेमाल हुआ है, लेकिन उसे तो विद्वान क्षेपक मानते हैं|

भारतवर्ष में प्राचीन हिंदू वर्ण व्यचस्था में लोगों को उनके द्वारा किये जाने वाले कार्य के अनुसार अलग-अलग वर्गों में रखा गया था।  
पूजा-पाठ व अध्ययन-अध्यापन आदि कार्यो को करने वाले ब्राह्मण 
शासन-व्यवस्था तथा युद्ध कार्यों में संलग्न वर्ग छत्रिय  
व्यापार आदि कार्यों को करने वाले वैश्य  
श्रमकार्य व अन्य वर्गों के लिए सेवा करने वाले शूद्र  कहे जाते थे। 
यह ध्यान रखने योग्य है कि वैदिक काल की प्राचीन व्यवस्था में जाति वंशानुगत नहीं होता था लेकिन गुप्तकाल  के आते-आते आनुवांशिक  आधार पर लोगों के वर्ण तय होने लगे। परस्पर श्रेष्ठता के भाव के चलते नई-नई जातियों की रचना होने लगी। यहाँ तक कि श्रेष्ठ समझे जाने वाले ब्राह्मणों ने भी अपने अंदर दर्जनों वर्गीकरण कर डाला। अन्य वर्ण के लोगों ने इसका अनुसरण किया और जातियों की संख्या हजारों में पहुँच गयी।वैदिक काल में वर्ण-व्यवस्था जन्म-आधारित न होकर कर्म आधारित थी| 
परन्तु  मेरे विचार में ब्राह्मण को ब्राह्मण उसके संस्कारों के कारण कहा गया और उन्हें समाज में उच्च स्थान दिया गया और शूद्रों को अस्पृश्य अर्थात जिन्हें छुआ नया जा सके भी उनके मानसिक विकारों के कारण कहा गया |  
कोई भी व्यक्ति अपने जन्म से अस्पृश्य नहीं होता बल्कि अपने कर्म से अस्पृश्य होता है |  
एक अस्पृश्य व्यक्ति अस्पृश्य इसलिए नहीं होता कि उसके कर्म जिनका निर्वाह वो अपने भरण पोषण के लिए कर रहा है वो गंदे कर्म हैं अपितु उसका कारण यह है कि उनका सानिध्य लोगों के अच्छे मानसिक विचारों का हनन करते है और उनकी उपस्थिति आपको गलत कर्मो कि ओर प्रेरित करती है | अस्पृश्य वो नहीं जो किसी ऐसे कार्य करने वाले के वहाँ जन्मा है अपितु अस्पृश्य वह है जो ऐसे विचारों का जनक है जो दूषित हैं |अस्पृश्य व्यक्ति वह है जिसकी स्वयं कही बात का कोई मोल ना हो , जिसकी नज़र में किसी अपने की जान कि कोई कीमत ना हों अर्थात अस्पृश्य वो हर वो बालक है जो अपने माता पिता की झूठी कसमे सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए खा लें , अस्पृश्य वो माता पिता है जो अपने हित के लिए अपने पुत्र को दांव पर लगा दें | अस्पृश्य वो हैं जिनके लिए अपनी बहन का मान सम्मान तो बहुत ज़रूरी है परन्तु दूसरे के मान सम्मान कि उन्हें कोई परवाह नहीं | आज के युग में जन्मा हर वो बालक जो एक लड़की के साथ छेड़ छाड करते हुए स्वयं कि तुलना कृष्ण से कर मुस्कुरा देता है वो अस्पृश्य है क्योंकि कान्हा तो बस एक ही थे जिन्हे  १८००० रानियों के होने के बाद भी योगीराज कहा जाता है |अर्थात हर वो व्यक्ति जो किसी भी गलत कार्य में संलग्न है अस्पृश्य है | हर जाती मे अस्पृश्य उपस्थित हैं जिन्हें छू कर आप भी वैसे ही बन जाते हैं |
अस्पृश्यता  जन्म से जनित गुण नहीं वरन कर्म से जनित गुण है|

Sunday 1 July 2012

तुम हों तो मैं हूँ तुम नहीं तो मैं नहीं

जब से जन्म लिया है शायद तब से अपने हर रिश्ते में बस तुम्हे ही ढूँढा हैं | बस तुम्हे हाँ बस तुम्हे |
शिव  नाम है तुम्हारा जाने कैसे जुड़ा है मेरा हृदय तुम्हारे साथ कि हर जगह हर ओर बस तुम्ही नज़र आते हों |हिमालय की कंदराओं में तुम , गंगा कि धाराओं में तुम , हरे भरे बागों में तुम , पपीहे की पुकार में तुम , मीरा कि तान में तुम, कबीर के निर्गुण और तुलसी के सगुण में तुम, मेरी शिराओं में तुम , मेरे रोम रोम में तुम हों बस तुम , शिव हों तुम |
शिव अर्थात मेरा अस्तित्व | 
तुम हों तो मैं हूँ तुम नहीं तो मैं भी नहीं |
जब जन्म लिया तो एहसास भी न था कि कौन हूँ और कहाँ से आयी हूँ ,पर जब पहली बार माँ के सीने से लग कर के सोयी थी तब उस सीने कि गर्माहट में तुम्हे महसूस किया था ,धीमे धीमे जब पहली बार बाबा कि उंगली पकड़ चलना सीखा तो उनकी उंगली में तुम्हे पाया, सखियों कि पुकार में तुम नज़र आये और उम्र के हर पड़ाव पर तुम्हे साथ ही पाया |क्यूँ इतना स्नेह दिया तुमने मुझे कि पिता में भी तुम ही दिखे, भाई में भी तुम ही , प्रेमी में भी तुम ही , पति में भी तुम ही और अंततः पुत्र में भी तुम ही |
कैसा है ये मेरा और तुम्हारा रिश्ता ?
मैं जब भी तुम्हारे सामने दुखी हों कर रोई तुमने बिन कुछ बोले मेरी व्यथा सुन ली और मुझे कष्ट देने वाले हर हाँथ को काट दिया तुमने , मैंने तो तुमसे अपने लिए न्याय माँगा था पर तुम्हे तो मेरी आँखों में आँसू स्वीकार ही नहीं थे | मेरे हर आँसू पर मैंने हर बार तुम्हारा तांडव नर्तन देखा है जैसे दछ यज्ञ के दौरान सती के स्वयं दाह के बाद तुमने सृष्टि का नाश किया था , मेरे हर आँसू पर तुम सदैव स्वयं भी रोये हों और तुम्हारे उस दर्द को हर बार महसूस किया है मैंने | तुम ही बताओ ये कौन सा और कैसा रिश्ता है हमारा तुमसे जब भी तुमसे ये पूछती  हूँ मैं  बस उत्तर में तुम्हारी मुस्कराहट ही मिलती है मुझे |
क्या अर्थ लगाऊँ तुम्हारी इस मुस्कुराहट का , क्या वही अर्थ लगाऊं जो मीरा कान्हा के अपनी पुकार पर आ जाने पर लगाया करती थी |
प्रेम है तुम्हे भी मुझसे वैसा ही जैसा कान्हा को मीरा से था , राधा से तो अपनी तुलना कर नहीं सकती मैंने क्यूंकि लाख प्रेम के बाद भी तुमने मेरे भाग्य में तो बिछोह और विरह ही लिखा है | बस उस प्रेम का मान रखने को दौड आते हों और फिर छोड़ जाते हों मुझे अकेला इस विश्वास के साथ कि भले तुम साथ न हों मेरे पर मैं जब भी पुकारूंगी तुम सब छोड़ कर मेरे लिए मेरे पास दौड़ आओगे |
आश्चर्य जनक है और अजीब भी मेरा और तुम्हारा ये रिश्ता पर यही मेरे जीवन का आधार है फिर वही एक बात जो सत्य है तुम हों तो मैं हूँ तुम नहीं तो मैं नहीं |

Saturday 30 June 2012

ईश्वर से प्रेम वेदनाओं से मुक्ति का रास्ता

कुछ लोग क्यूँ खुद को हमेशा दुनिया की नज़र में दीन हीन दिखाना चाहते हैं | हमेशा दूसरों को ये दिखाना चाहते हैं कि वो कितने दुखी है और सबने उनके साथ कितना गलत किया है जबकि उनके साथ सिर्फ वो ही गलत करते हैं | ऎसी प्रजाति के लोग हमेशा उन्हें शक कि नज़र से देखते हैं जो उनके अपने होते हैं और उनपर विश्वास किये रहते हैं जो उन्हें धोखा दे रहे होते हैं | प्रेम कि चाह करना किसी भी इंसान कि आधारभूत ज़रूरत है परन्तु प्रेम को जीवन में बनाये रखने के लिए उस पर विश्वास उससे कहीं अधिक आधारभूत  ज़रूरत है |
रिश्तों कि प्रगाढता समय के साथ और विश्वास के साथ बढ़ती है | 
आप किसी का प्रेम उसके सम्मुख खुद को दीन हीन बना कर नहीं पा सकते | जब जब आप अपने दुःख किसी के साथ बांटते  हैं आप प्रेम का नहीं हंसी का पात्र बनते हैं प्रारंभिक स्थितियों में तो आपके कष्टों को सुनने वाला आपके साथ सहनुभूति जताता है और उस सहानुभूति और आपका सहयोग करने कि आड़ में वो आपके ह्रदय में अपना स्थान बनाने  की कोशिश करता है और जब उसे ये एहसास होने लगता है कि वो आपके लिए ज़रूरी हों गया है  जीने के लिये साँस लेने के लिए तो शुरू होता है खेल भावनाओं का , उसके बाद प्रारंभ होती हैं प्रताड़ना देने कि प्रक्रिया उसे जिसे कल तक वो कहता था कि तुम्ही मेरा जीवन हों , मैं तुम्हारी आवाज़ से अपनी सुबह कि शुरुआत और दिन का अंत करना चाहता हूँ | शुरू होती है उसे उसी कि नज़रों में गिरा देने कि प्रक्रिया | 
वो दौर नहीं है आज कि प्यार के लिए लोग जीवन बिता दें , जान दे भी दें और जान ले भी लें आज तो दौर है उसकी जान ले लेले का जो आपको सच्चे ह्रदय से प्रेम करता है क्यूंकि आप जानते हों कि वही है जो कुछ भी बर्दाश्त कर लेगा आपका क्रोध और तिरिस्कार भी और फिर भी बार बार आपको मानाने और समझाने आएगा , बार बार आपके लिए अपने अहम को भी त्याग देगा | 
परन्तु सच्चे ह्रदय से प्रेम करने वाले का ये त्याग किसी भी ऐसे इंसान को जो बस समय व्यतीत करने के लिए , या यूँ कह लें अपनी कुछ भौतिक आवश्यकताओं के लिए आपके साथ है तब तक समझ नहीं आएगा जब तक वो स्वयं किसी से प्रेम नहीं करेगा और उसे प्रेम के बदले वही नहीं मिलेगा जो उसने आपको दिया है | प्रेम से प्रेम उत्पन्न हों ये आज के दौर में आवश्यक नहीं तो सचेत रहे आज के दौर में प्रेम करने वाला ह्रदय बस दर्द और तकलीफ पाता है |
ये किसी भी व्यक्ति का अपना चुनाव है कि वो क्या चाहता है प्रेम या जीवन भर कि कुंठा कि जिसे उसने प्रेम किया उसने उस पर विश्वास ही नहीं किया |
यदि प्रेम चाहिए तो अपेच्छा त्याग कर बस प्रेम करिये और प्रेम करिये ईश्वर से जो प्रेम के बदले सदा प्रेम ही देता है | उससे प्रेम करने की राह में कष्ट नहीं बस सुख है और ये तो तुलसीदास जी कि पत्नी ने उन्हें बरसों पहले ही बता दिया था कि जितना मुझमे रमे हों उतना राम नाम में रमे होते तो भव सागर से पार उतर जाते | जीवन में ये अनुभव बहुत देर में मिलता है पर ईश्वर ने मुझे ये अनुभव उम्र के इस पड़ाव में ही करा दिया कि 
"मैं ही सत्य हूँ बाकि सब मिथ्या |"
समय अवश्य लगा समझते समझते परन्तु अंततोगत्वा समझ आ ही गया कि बस वही एक सत्य है और उसी से प्रेम कर आप सच्ची शान्ति और सभी वेदनाओं से मुक्ति पा सकते हैं | ये मेरा अपना अनुभव है जो आपसे बांटने कि ये मेरी एक छोटी सी कोशिश है |

Friday 29 June 2012

छमा दान

क्यूँ है इतनी पाबन्दी , तुम ये मत करो तुम ये मत करो , तुम ऐसा मत करो तुम वैसा मत करो ,क्यूंकि तुम करोगे  तो गलती ही करोगे | क्या इंसान कि कुछ गलतियाँ उसका पीछा नहीं छोडती हैं हमेशा उसके जीवन में कलुषता घोलती रहती है | बहुत सोचा है इस विचार पर मैंने और अब लगता है श्री श्री रविशंकर जी , आचार्य रजनीश , कृपालु जी महराज जैसे कितने ही गुरुओं ने अपनी दीच्छा के प्रथम चरण में जो कहा छमा करना सीखो पहले स्वयं को अपनी गलतियों के लिए और फिर दूसरों को उनकी भूलों के लिए | क्या ये छमा दान कोई मनुष्य किसी को ह्रदय से दे पाया है |
छमा करने के बाद क्या वो विषय या भूल जिसके लिए मनुष्य को छमा किया गया है उसे बार बार उसे जताना चाहिए |
किसी भी मनुष्य के द्वारा कि गयी गलती को भूल इसीलिए कहा जाता है ताकि उसे भूल कर उसे आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया जा सके न कि बार बार उन्ही बातों को दोहरा कर उसे नीचा दिखाने कि चेष्ठा कि जाये |
वो तो वैसे ही गलती करने वाला  शारीरिक और मानसिक वेदना दोनो झेल चुका होता है और बार बार उसे याद दिला उसे आत्मग्लानी के उसी भंवर में धकेल देना क्या उचित है |
गलतियाँ बार बार तभी होती है जब तक गलती करने वाले का विश्वास नहीं टूटता उदाहरण के तौर पर यदि कोई इंसान किसी इंसान से बार बार धोखा खाता है तो इसका अर्थ ये नहीं कि वो गलत है इसका अर्थ ये है कि अभी उस इंसान पर उसका भरोसा कायम है | और ये निशानी है उस मनुष्य के सच्चे होने की | परन्तु किसी भी मनुष्य के जीवन में इसकी एक सीमा निर्धारित होती है कुछ कि सहनशीलता एक धोखे में ही समाप्त हों जाती है  और वो दोबारा वैसी गलती नहीं करते इसके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी हैं जो किसी के द्वारा दिए धोखे को उसकी भूल समझ बार बार माफ करते हैं तब तक जब तक उन्हें ये एहसास नहीं हों जाता कि उनकी प्रवित्ति वैसी ही है जैसी विषधर भुजंग कि होती है | 
इतनी सामर्थ्य की किसी को बार बार छमा दान दे सके संत में ही होती है जो बार बार डंक मारने वाले बिच्छू को भी उठा कर किनारे रख देता है , क्यूंकि ये तो प्रवित्ति का अंतर है बिच्छू कि प्रवित्ति है डंक मारना और संत कि प्रवित्ति है छमा करना |
मेरे विचार में जिन गलतियों के लिए आपने कभी किसी को छमा किया हों उन गलतियों का ज़िक्र करके उसे वापस उन्ही मानसिक स्थितियों में न धकेले जब भी किसी को छमा करें पूर्णता से करें |

Thursday 28 June 2012

नए रिश्ते

आज के दौर में कुछ नए रिश्तों ने जन्म लिया है ये मुझे कुछ दिनों पहले ही मैंने जाना जब मैं अपनी मित्र कि बेटी के साथ बैठ कर कुछ आम विषयों पर उसे सजग कर रही थी , और वो मुझे मित्रवत समझ अपनी भावनाएं मुझसे बाँट रही थी | 
मासी मैं आज कल पेंटिंग क्लास्सेस जा रही हूँ और देखिये ये कवितायेँ मैंने लिखी हैं कितना अपनापन था उसकी बातों में पर तभी अचानक उसके फोन पर एक मिस कॉल और बस उसका ध्यान उसकी प्रिय मासी से हट कर फोन पर चला गया , और अचानक वो लैप टॉप ले कर बैठ गयी , मैंने पूछा क्या हुआ बेटा कुछ काम करना है स्कूल का अचानक याद आ गया तो वो बोली नहीं मासी मेरे नेट फ्रेंड का मैसेज आया है वो ऑनलाइन आ रहा है , मै ज़रा उससे बात कर लूं |
मैंने उससे जानते हुए भी पूछा ये नेट फ्रेंड क्या है ? तो उसने मुझे बड़ी हेय दृष्टी से देखते हुए कहा आपको नहीं पता मौसी जो दोस्त इन्टरनेट से बनते हैं उन्हें नेट फ्रेंड और जो फोन से बनते हैं उन्हें फोन फ्रेंड कहते हैं वैसे ही जैसे पेन पाल होते थे चिट्ठियों से बने दोस्त | मैंने पूछा क्या मिली हों तुम अपने इन दोस्तों से तो वो हंस कर बोली माँ को तो नहीं बताओगी ना ,
मैंने भी हाँ में अपना सर हिला दिया |
वो बोली हाँ मासी कुछ से मिली हूँ |
पर सच मेरी तो रूह ही कांप गयी ये सोच कर कि ये सब क्या है ? ये कौन सा रिश्ता है जिसके लिए घर आयी मासी को छोड़ कर उठा जा सकता है |
नेट फ्रेंड और फोन फ्रेंड |
वो मुसका मुस्का कर अपने कम्प्यूटर पर कुछ टाइप कर रही थी और मैं उसकी वो मुस्कान देख कर अचरज में थी कि ये कैसे नए रिश्ते हैं जो सामने बैठे एक मनुष्य को दूसरे से दूर कर देते हैं |
क्या मज़ा है ऐसे रिश्ते निभाने में और क्या सच्चाई है ऐसे रिश्तों की ?
हाँ  आज मामा मामी , नाना नानी , माँ बाबा , भाई बहन , चाचा चाची इन सभी रिश्तों से ऊपर हों गऐ हैं ये रिश्ते ,
ये नए रिश्ते |

प्यार कि परिभाषा

इन्टरनेट कि दुनिया कुछ ऐसी है जहाँ किसी को भी किसी से भी दो पल में प्यार हों जाता है |
अभी मिले भी नहीं , साथ चले भी नहीं , एक दूसरे को जाना भी नहीं ,पर जाने कैसे प्यार अपनी सीमाएं लांघ गया , और किसी एक ने खुद की तुलना  हीर , रांझे और मजनू से करनी शुरू कर दी |
वाह भाई वाह क्या प्यार था ये कि जब तक एक मिलने को मना करता रहा खुद को अभिव्यक्त करने को मना करता रहा , खुद को छिपाता रहा तब तक दूसरे कि उत्कंठा उसमे बनी रही |
और जैसे ही वो अपने वास्तविक रूप के साथ सामने वाले के लाख अनुरोधों के बाद सामने आया सामने वाले का गर्व पुष्ट हों गया कि मैंने तो एक लड़की को अपने सन्मुख झुका लिया ..........
और यहीं पर प्यार समाप्त हों गया और चल पड़ा वही रोज का नाटक लड़ाई झगडा और शक ...........
वो जिसने देर से खुद को अभिव्यक्त किया आज वो सच्चे प्यार कि गिरिफ्त में थी और जो एक पल में प्यार का शिकार हुआ था वो पुरुष बस एक शारीरिक जघन्य अपराध करने कि फिराक में था |
हाँ यही था उसका प्यार जो जिस्म से शुरू होकर बस जिस्म तक ही जाता था ,
मन से उसका कोई नाता ही नहीं था .......
एक १८ साल के लडके को ४८ साल कि महिला से प्यार हों जाता है महिला के समझाने पर वो तथ्य देता है उम्र का फर्क प्यार में कोई मायने नहीं रखता ,
क्यूंकि प्यार करने के लिए ह्रदय नहीं शरीर आवश्यक  है ये अकथनीय तथ्य छुपा रह जाता है उसकी प्यार कि परिभाषा के अंदर |

फेस बुक एक सोशल नेटवर्किंग साईट है यहाँ पर भी आपसे बड़ा उम्र में बड़ा और आदरणीय है और छोटा स्नेह और प्यार के योग्य |
यदि आप किसी से छोटे हैं तो छोटा बन कर स्नेह ले सकते हैं और बड़े हैं तो बड़े बन कर आदर और सम्मान | परन्तु अपने दृष्टीकोण को बड़ा करने कि आवश्यकता है शारीरिक ज़रूरतों से आगे बढ़ कर मानसिक  ज़रूरतों को ढूँढने कि आवश्यकता |
आप सब से मेरा अनुरोध है मित्रता जैसे शब्द को इतना छोटा ना करें|
प्रेम कि अपनी संकल्पना है और जब प्रेम होता है तो मनुष्य कि दुनिया बदल जाती है , वो किसी और के लिए अपने प्राण तक दे देता है परन्तु ये कोई एक पल का खेल नहीं कि किसी को दो बार हेल्लो , हाउ आर यू ? लिख देने के बाद सीधे आई लव यू  लिख दिया जाये |

यहाँ मैं सम्पूर्ण पुरुष प्रजाति पर आरोप नहीं लगा रही अच्छे और बुरे लोग हर कुनबे में हैं , लड़किया भी गलत हैं बहुत सी जगहों पर पर |
ईश्वर ने भी पुरुष को शारीरिक और मानसिक स्तर पर श्रेष्ठ बनाया है और मैं इसे स्वीकारती भी हूँ  तो यदि आप श्रेष्ठ है तो ऎसी अभद्र गलतियाँ न करें और यदि कोई लड़की ऐसी गलती कर रही है तो उसका उपभोग करने के स्थान पर उसे रोकने का प्रयत्न करें क्यूंकि पुरुष तो हर स्तर पर श्रेष्ठ है |

मेरी इस पोस्ट से यदि किसी कि भी भावनाएं आहत हुयी हों तो मैं छमा प्रार्थी हूँ , ये किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं आम जनो के लिए हैं |