Saturday 30 June 2012

ईश्वर से प्रेम वेदनाओं से मुक्ति का रास्ता

कुछ लोग क्यूँ खुद को हमेशा दुनिया की नज़र में दीन हीन दिखाना चाहते हैं | हमेशा दूसरों को ये दिखाना चाहते हैं कि वो कितने दुखी है और सबने उनके साथ कितना गलत किया है जबकि उनके साथ सिर्फ वो ही गलत करते हैं | ऎसी प्रजाति के लोग हमेशा उन्हें शक कि नज़र से देखते हैं जो उनके अपने होते हैं और उनपर विश्वास किये रहते हैं जो उन्हें धोखा दे रहे होते हैं | प्रेम कि चाह करना किसी भी इंसान कि आधारभूत ज़रूरत है परन्तु प्रेम को जीवन में बनाये रखने के लिए उस पर विश्वास उससे कहीं अधिक आधारभूत  ज़रूरत है |
रिश्तों कि प्रगाढता समय के साथ और विश्वास के साथ बढ़ती है | 
आप किसी का प्रेम उसके सम्मुख खुद को दीन हीन बना कर नहीं पा सकते | जब जब आप अपने दुःख किसी के साथ बांटते  हैं आप प्रेम का नहीं हंसी का पात्र बनते हैं प्रारंभिक स्थितियों में तो आपके कष्टों को सुनने वाला आपके साथ सहनुभूति जताता है और उस सहानुभूति और आपका सहयोग करने कि आड़ में वो आपके ह्रदय में अपना स्थान बनाने  की कोशिश करता है और जब उसे ये एहसास होने लगता है कि वो आपके लिए ज़रूरी हों गया है  जीने के लिये साँस लेने के लिए तो शुरू होता है खेल भावनाओं का , उसके बाद प्रारंभ होती हैं प्रताड़ना देने कि प्रक्रिया उसे जिसे कल तक वो कहता था कि तुम्ही मेरा जीवन हों , मैं तुम्हारी आवाज़ से अपनी सुबह कि शुरुआत और दिन का अंत करना चाहता हूँ | शुरू होती है उसे उसी कि नज़रों में गिरा देने कि प्रक्रिया | 
वो दौर नहीं है आज कि प्यार के लिए लोग जीवन बिता दें , जान दे भी दें और जान ले भी लें आज तो दौर है उसकी जान ले लेले का जो आपको सच्चे ह्रदय से प्रेम करता है क्यूंकि आप जानते हों कि वही है जो कुछ भी बर्दाश्त कर लेगा आपका क्रोध और तिरिस्कार भी और फिर भी बार बार आपको मानाने और समझाने आएगा , बार बार आपके लिए अपने अहम को भी त्याग देगा | 
परन्तु सच्चे ह्रदय से प्रेम करने वाले का ये त्याग किसी भी ऐसे इंसान को जो बस समय व्यतीत करने के लिए , या यूँ कह लें अपनी कुछ भौतिक आवश्यकताओं के लिए आपके साथ है तब तक समझ नहीं आएगा जब तक वो स्वयं किसी से प्रेम नहीं करेगा और उसे प्रेम के बदले वही नहीं मिलेगा जो उसने आपको दिया है | प्रेम से प्रेम उत्पन्न हों ये आज के दौर में आवश्यक नहीं तो सचेत रहे आज के दौर में प्रेम करने वाला ह्रदय बस दर्द और तकलीफ पाता है |
ये किसी भी व्यक्ति का अपना चुनाव है कि वो क्या चाहता है प्रेम या जीवन भर कि कुंठा कि जिसे उसने प्रेम किया उसने उस पर विश्वास ही नहीं किया |
यदि प्रेम चाहिए तो अपेच्छा त्याग कर बस प्रेम करिये और प्रेम करिये ईश्वर से जो प्रेम के बदले सदा प्रेम ही देता है | उससे प्रेम करने की राह में कष्ट नहीं बस सुख है और ये तो तुलसीदास जी कि पत्नी ने उन्हें बरसों पहले ही बता दिया था कि जितना मुझमे रमे हों उतना राम नाम में रमे होते तो भव सागर से पार उतर जाते | जीवन में ये अनुभव बहुत देर में मिलता है पर ईश्वर ने मुझे ये अनुभव उम्र के इस पड़ाव में ही करा दिया कि 
"मैं ही सत्य हूँ बाकि सब मिथ्या |"
समय अवश्य लगा समझते समझते परन्तु अंततोगत्वा समझ आ ही गया कि बस वही एक सत्य है और उसी से प्रेम कर आप सच्ची शान्ति और सभी वेदनाओं से मुक्ति पा सकते हैं | ये मेरा अपना अनुभव है जो आपसे बांटने कि ये मेरी एक छोटी सी कोशिश है |

2 comments:

  1. http://yayavar420.blogspot.in/2012/07/blog-post_21.html

    Sundar Alekh :::
    Mere Blog par bhi apka Swagat hai ---
    http://yayavar420.blogspot.in/2012/07/blog-post_21.html

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